अमित कुमार निरंजन | नई दिल्ली .आईआईटी दिल्ली में प्रो. एम बालाकृष्णन उस टीम का सदस्य रहे हैं, जिसने विमान वाहक जंगी जहाज आईएनएस विक्रांत को रात में लड़ाकू विमान उतरने की तकनीक बनाकर दी थी। आज वे दृष्टिहीनों के जीवन में खुशी ला रहे हैं। उनके बनाए यंत्रों से हजारों लाेग पढ़-लिख और सड़कों पर बेखौफ चल रहे हैं। वे बताते हैं कि 2002 में मैं ब्लाइंड बच्चों के एक स्कूल में गया था, उनकी परेशानियां देखकर कुछ करने की ठानी।
2009 में देश की एकमात्र असिस्टेक लैब के माध्यम से काम शुरू किया। हमने स्मार्ट कैन बनाई, जो पेड़ की टहनी, मुड़ा हुआ खंभा जैसी हवा में झूलती चीजों के बारे में कुछ मीटर दूर से ही बता देती है। साथ ही टेक्टल डायग्राम बुक बनाई, जिससे ब्लाइंड बच्चे विज्ञान पढ़ सकते हैं। विदेशों में इसका एक पेज 150 रु. में बनता है। हमने 20 रु. में बनाया है। इस तरह ‘ऑनबोर्ड’ आसपास से गुजरने वाली बस की जानकारी ब्लाइंड व्यक्ति की डिवाइस पर दे देती है। साथ ही ब्रेल लैपटॉप भी बनाया है।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2YQExgZ